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केंद्रीय कर्मचारियों के अच्छे दिन ! केंद्र ने पहले डीए रोका, अब खर्चों में और कटौती के आदेश

केंद्र सरकार के ताजा आदेश ने कर्मियों को परेशान कर दिया है। सरकार कहती है कि कोरोना काल में खर्च बढ़ता जा रहा है। राजस्व पर बुरा असर पड़ा है, इसलिए सभी मंत्रालय और विभाग अपने खर्चों पर अंकुश लगाएं। ओवरटाइम, यात्रा भत्ता, आपूर्ति व राशन की लागत आदि के खर्च में 20 फीसदी की कमी कर लें। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि सरकार, कोरोना की वैक्सीन फ्री में लगा रही है। गरीब परिवारों को दिवाली तक मुफ्त राशन देना है तो इससे सरकार के खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। राजकोषीय घाटा बेकाबू न हो जाए, इसलिए खर्च में कटौती का आदेश जारी किया गया है।
नेशनल काउंसिल (जेसीएम) की स्टैंडिंग कमेटी के वरिष्ठ सदस्य और अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ के महासचिव सी. श्रीकुमार कहते हैं, कोरोना में डीए रोक कर केंद्र ने 80 हजार करोड़ रुपये बचा लिए, दूसरी तरफ सात लाख खाली पड़े पदों पर नियुक्ति नहीं की जा रही तो कैसे कह दें कि कर्मियों के ‘अच्छे दिन’ हैं।
अब ओवरटाइम में कटौती कर दी गई। सरकारी कर्मियों का डीए बंद और उनसे पीएम केयर फंड के लिए एक दिन का वेतन भी ले लिया, मगर जब कुछ लौटाने की बात आती है तो सरकार बीस फीसदी कटौती का फरमान जारी कर देती है।
सी. श्रीकुमार के अनुसार, केंद्र सरकार तो कर्मियों के लिए बुरे दिन ला रही है। कोरोनाकाल में करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई है। विभिन्न महकमों में सात लाख पद खाली पड़े हैं। इनमें से दो लाख रक्षा उद्योग और तीन लाख तो अकेले रेलवे में ही खाली हैं। कर्मियों से दिन रात काम लिया जा रहा है, लेकिन उनके हितों पर एक पैसा खर्च नहीं किया जा रहा। जनवरी 2020 से कर्मियों का डीए रोक कर सरकार ने अस्सी हजार करोड़ रुपये की राशि बचा ली है। अब सरकार खुल कर ये भी नहीं बता रही है कि डीए और एरियर, कब तक कर्मियों के खाते में जमा हो जाएगा।
कई विभाग तो ऐसे हैं, जहां पर एक कर्मी, तीन लोगों का काम कर रहा है। ओवरटाइम का मतलब प्रोडक्शन बढ़ाना भी होता है। अब सरकार ने उसमें कटौती कर दी है। केंद्र सरकार के करीब 48 लाख वेतनभोगी और 50 लाख पेंशनर, इन सभी को डीए-डीआर का भारी नुकसान हुआ है। हजारों लाखों कर्मी तो रिटायर भी हो गए हैं, अब उन्हें डीए कैसे मिलेगा। सरकार ने उनका पैसा तो बचा ही लिया। कोरोना संक्रमण की वजह से करीब दस हजार कर्मियों की मौत हुई है। इनमें से चार हजार तो रेलवे के कर्मचारी हैं। इन कर्मियों के आश्रितों को आर्थिक नुकसान सहना पड़ेगा। सरकार, कर्मियों के आश्रितों को एक्सग्रेसिया पेमेंट और नौकरी देने में भी आनाकानी कर रही है।
केंद्र सरकार, लाभ में चलने वाले उपक्रमों को निजी हाथों में सौंपने जा रही है। बतौर श्रीकुमार, सरकार की नीतियां गलत हैं, लेकिन वह जानबूझकर कदम पीछे रखने के लिए तैयार नहीं हो रही। कोरोना काल में यह साबित हो चुका है कि आपदा के दौरान सरकारी संस्थान ही आम लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं। एक दिन पहले ही देश के तीन बड़े कर्मचारी संगठनों की मुख्य श्रम आयुक्त के साथ बैठक हुई थी। वहां पर एक विभाग के जेएस कहते हैं, निजीकरण पर बात करने का कोई फायदा नहीं है। यह तो सरकार की नीति है। वित्त मंत्रालय ने पिछले साल भी दो बार सभी मंत्रालयों और विभागों से खर्च में कटौती करने का आदेश दिया था।
नॉन डेवलपमेंट खर्च को कम करने की घोषणा के साथ मंत्रालयों और विभागों में नए पदों के सृजन पर रोक लगा दी गई थी। आयातित कागज पर किताबें और दस्तावेज छापना बंद कर दिया गया। सलाहकारों की संख्या घटाने के लिए भी कहा गया था। इस बार ओवरटाइम भत्ता, रिवार्ड्स, घरेलू यात्रा, विदेश यात्रा खर्च, ऑफिस खर्च, रॉयल्टी, प्रकाशन, राशन की लागत, विज्ञापन, प्रचार, सेवा शुल्क एवं रेट्स और टैक्स आदि पर खर्च घटाने के लिए कहा गया है।


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